Monday, March 31, 2008

एक सच्चा अनुभव

पिछले दिनों जब विभाग मे कुल संदेश को हमारे शिक्षकों द्वारा संवारा जा रहा था , कुछ सिखने के लिए मैं और हर्ष देर तक विभाग मे रुकने लगे, उन दो - तीन दिनों मे मुझे काफी कुछ सीखने को मिला। सबसे मजेदार बात सीखने को मिली की किस तरह से आप बड़े ही संयम से गलतियाँ खोज कर उन्हें सुधारते जाते हैं। जिस काम को मैं अब तक इतना आसान समझ रहा था अब पता चला की वो निहायत ही धीरज और सब्रका काम है। मैंने सीखा किस तरह घंटों बैठना पड़ता है एक एक पेज को छापने लायक बनने के लिए । अब मैं जान चुका हूँ की कितनी मेहनत करके निकलता है कुल संदेश।

Wednesday, March 19, 2008

जीजस

जीजस!

हर युग मे तुम्हें सलीब ही दी जायेगी,

क्योंकि दुनिया को तुम सलीब पर टंगे ही

अच्छे लगते हो

इसके बाद

न्याय का नाटक खेला जाएगा

कथित प्रायश्चित के आंसू तपकेंगे

और

सब कुछ शांत हो जाएगा

तालाब मे फेंके गए कंकड़ की तरह,

थोडी हलचल, फ़िर सब कुछ निश्छल

तुम्हारा संदेश ले जाने वालों के साथ भी

यही किया जाएगा, क्योंकि उन्हें

विरासत मे मिली है ,तुम्हारी पीड़ा

क्या इसीलिए दी थी अपनी जान तुमने ?

धर्म की आड़ मे लपलपाती जीभ लिए

घूम रहे हैं रोज़ गीदड़ ...

घोंट देंगे गला तुम्हारे त्याग का

कानो के परदे फाड़ फाड़ कर चीखेंगे चिल्लायेंगे

धर्म ध्वजा लहराएंगे

और

gaar denge उसे तुम्हारी कब्र पर !

तुम्हारे अगले आगमन की प्रतीछा मी

सलीबें तैयार की जाएँगी

मानवता रोएगी, कराहेगी ,

लेकिन तुम रुकोगे कब,

तुम too आते ही रहोगे
her युग मी

शान्ति का सदेश लेकर।

द्वारा:बी. पांडेय

एक आरजू

"भगवान् करे ,
फूलों की खुशबुओं से भरी ,
तुम्हारी राहें हों ,
तुम्हे उमग कर अपने अन्दर
समेट लेने को,
अपनों की बाहें हों,
पर,
वहां जाकर भी नहीं भूलना,
उन बाँहों को,
जो तुम्हारे लिए,
अनायास उठ गई थीं,
भूलना नहीं उन आंखों को
जो अचानक ही
तुम्हारे जाने की बात सुनकर,
छलक आयीं थीं,
हाँ,
वहां जाकर
ये बात ज़रूर कहना
हमने कहा है,
सियासी नक्शों से।
ज़मीनें बंटती हैं,
दिल नहीं. "

द्वारा:...............

Friday, March 14, 2008

तुम

तुम शायद नही जानती ,
तुम्हारे 'तुम' होने से मुझे क्या फर्क पड़ता है ,
पर तुम्हारा तुम होना ही मुझे देता है एक संबल ,
एक आशा,एक अनुभूति ,
जिसके सहारे मैं निकल पड़ता हूँ,
इस जहाँ में , एक मंजिल की खोज मे,
निर्भय,निडर,निश्चिंत होकर
क्योंकि,
जब भी मेरे सामने मुसीबतों के पहाड़ आते हैं,
यूं लगता है तुम यहीं कहीं हो,
मेरे आस पास ,
देख रही हो मेरे कामों को,
और
मेरे कुछ भी ग़लत करने पर
आकर टोकोगी मुझे,
वैसे ही जैसे बचपन मी टोका करती थी,
मरोड़ देती थी तुम मेरे कानो को,
main रोता रहता था,
पर आज में जान गया हूँ ,
तुम जो कुछ भी करती हो ,
मेरे भले के लिए ही होता है,
आख़िर
ऐसा क्यों न हो ,
आख़िर
तुम हो मेरी
मेरी 'माँ'

by:kaushalendra