मोबाइल सेवा उपयोग करने वालों के लिए वैल्यू एडेड सर्विस में मेडीफोन नामक एक नई सेवा की शुरुआत हुई है. देश की सबसे बेहतर पहुंच वाली सेवा प्रदाता कंपनी ने इस बार वैल्यू एडेड सेवाओं में लोगों के स्वास्थ्य के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को बताते हुए इसे ग्राहकों के लिए अति उपयोगी बताया है. सेवा के विज्ञापन में कहा जा रहा है कि बीच रात में डाक्टर की जरूरत है तो फलां नंबर पर फोन मिलाइए और डाक्टरी सलाह हाजिर है. जाहिर सी बात है कि अन्य सेवाओं की तरह सेवा प्रदाता द्वारा इस सेवा को भी काफी गुणवत्तापरक और किफायती बताया जा रहा है पर भारत जैसे देश में इस तरह की सेवा शुरु करने से पहले इससे जुड़े कई अहम मसलों पर विचार करने की आवश्यकता है.
सेवा प्रदाता कंपनियों द्वारा वैल्यू एडेड सेवाओं के रूप में पहले से ही एसएमएस, एमएमएस, पीटीटी, कॉलर ट्यून, क्रिकेट अपडेट, मोबाइल आन रेडियो जैसी कई सेवाएं प्रदान की जा रही हैं. इन सेवाओं का उपभोक्ता कितना फायदा उठा पाता है और सेवाओं का उपयोग करने वाले को कितनी परेशानियां झेलनी पड़ती हैं यह तो जगजाहिर है. मोबाइल कंपनियों द्वारा वैल्यू एडेड सेवाओं के नाम पर ग्राहकों को चूना लगाने की घटनाएं आम हो चुकी हैं. समय समय पर ट्राई की ओर से जारी दिशा निर्देशों की कंपनियों के पास कोई कदर नहीं है और सही जानकारी के अभाव में अपभोक्ता शिकायत भी नहीं कर पाते. इससे इतना तो साफ है कि हमारे देश में सेवा प्रदाता कंपनियों और उनकी सेवाओं पर नियंत्रण करने में ट्राइ अक्षम रहा है. ऐसे में मेडीफोन सेवा को लेकर कई कई सवाल खड़े होते हैं.
पहला सवाल तो यही खड़ा हो जाता है कि क्या टेलीफोन पर स्वास्थ्य से संबंधित सलाह और दवाओं पर भरोसा किया जा सकता है. भारत जैसे देशों में जहां स्वास्थ्य सेवाओं और सही डाक्टरों की उपलब्धता के बारे में अब तक तमाम आलोचनाएं जारी हैं. मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया कई बार इस संबंध में अपनी चिंता जाहिर कर चुका है. अस्पतालों में गलत चिकित्सकीय परामर्श से हजारों मारे जा रहे हैं ऐसे में टेलीफोन पर दवाओं की लिए सलाह पर कतई निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता. फिर इस बारे में तो और भी नहीं निश्चिंत हुआ जा सकता कि फोन के दूसरी ओर कोई प्रोफेशनल डाक्टर है या फिर कोई नर्स या अन्य ऐरा गैरा जो आपके जीवन रक्षक के रूप में सलाह दे रहा है.
दूसरी चिंता स्वयं उपभोक्ता को लेकर है. भारत में मोबाइल उपयोग करने वाली एक बड़ी जनसंख्या सही से शिक्षित और जागरूक नहीं है, वह रोगों के सही लक्षण बता पाने में भी सक्षम नहीं है. ऐसे में यह निश्चित है कि अगर फोन के दूसरी ओर प्रोफेशनल डाक्टर हुआ तो भी वह रोग का सही अंदाजा नहीं लगा पाएगा, सही दवा तो दूर की बात है.
तीसरा सवाल इस सुविधा के लिए कंपनी की ओर से लिए जाने वाले चार्ज को लेकर है. शुरुआती तौर पर इस सुविधा के लिए 15 रुपए प्रति कॉल की ऑफर रखी गई है. इसके बाद प्रति कॉल 35 रुपए की दर निर्धारित की गई है. ऐसे में यह साफ हो जाता है कि इस सुविधा से आम लोगों को फायदा नहीं ही होने वाला. आम भारतीय इतने की दवा शायद ही महीने भर में खर्च करता हो. रही पैसे वाले तबके की बात तो वह अपने फैमिली डाक्टर से रात में भी चिकित्सकीय सलाह लेने में सक्षम होता है.
ऐसे में यह तो निश्चित ही है कि मेडीफोनी नामक इस सेवा की विश्वसनीयता संदिग्ध है. अभी तक यह भी साफ नहीं है कि इसे एमसीआई से प्रमाणित किया गया है या नहीं. इसके अलावा जिस टेली ट्रैग तकनीकि का प्रयोग इसके सुविधा के लिए किया जाना है उसके बारे में भी अभी तक भारत में कोई नियम नहीं हैं. कंपनी द्वारा किए गए सारे दावे पश्चिमी देशों में इसके अब तक के प्रयोगों पर आधारित हैं. यह तो निश्चित ही है की अगर इस सेवा पर सही नियमन करना है तो पहले तो यह सुनिश्चित करना होगा कि एमसीआई के हिसाब से सही प्रशिक्षित डाक्टरों से ही सलाह मिले और एक अचूक व्यवस्था का निर्माण किया जाये जिससे गलत सलाह न मिले और उपभोक्ता को खामियाजा न भुगतना पड़े. अंत में फिर वहीं बात आ जाती है कि कंपनी इस सेवा के बदले खुद कितनी ईमानदारी दिखाती है. कहीं दूसरी वैल्यू एडेड सेवाओं की तरह इस सेवा के बदले में भी फर्जी पैसे न काटे जाएं और अनपढ़ और कम जागरूक उपभोक्ता इसका शिकार बन जाए. इसके बाद ट्राई कि अहम् भूमिका होगी जो इसमें उपभोक्ताओं के हितों कि सुरक्षा सुनिश्चित कि जा सके. ऐसे में दोनों के बीच सामंजस्य बने बिना इस सुविधा को लागू करना सही नहीं होगा. तभी इसका सही फायदा मिल सकेगा.
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