Friday, March 27, 2009

आरज़ू घर के बूढों कि

आंखों आंखों रहे और कोई घर न हो!
ख्वाब जैसा किसी का मुकद्दर न हो !
क्या तमन्ना है रोशन तो सब हों मगर ,कोई मेरे चरागों से बढ़कर न हो !
रौशनी है तो किस काम कि रौशनी ,आँख के पास जब कोई मंज़र न हो !
क्या अजब आरज़ू घर के बूढों कि है,शाम हो तो कोई घर से बाहर न हो !

Thursday, March 26, 2009

बेकार ही शिकवा करते रहते हैं

वक्त बेवक्त वक्त से लड़ते रहते हैं

जाने किन खाबों के समंदर में डूबते उतरते रहते हैं

डर नहीं लगता था पहले किसी शै से मगर

अब हम अपने साए को देखकर भी सिहरते रहते हैं

कुछ संजों कर रख लिए थे किताबों में फूल हमने

अब उन्हीं फूलों से बातें करते रहते हैं

बीत रहा है सब कुछ एक वो ही नहीं बीतता

और फ़िर सिर्फ़ गमें इश्क हो तो सह भी लें

यहाँ तो गमें दुनिया ने भी जीना दुश्वार कर रखा है

कैसे समझाएँ अपने आपको कि

लिख गई है तकदीर अपनी ख़ाक से

हम बेकार ही शिकवा करते रहते हैं

Thursday, March 12, 2009

सब कुछ भूल जायेंगे

कौन जाने कौन क्या था
वक्त ही शायद बेवफा था
छोड़ दिया जिसको हमने अंजान समझ
वही शायद जिन्दगी का रास्ता था
बयाँ नहीं कर पाया कभी किसी से हाल-ऐ-दिल
मुझे उसकी मोह्हबत का वास्ता था
धोखा खाया है हमने अपने आप से
उसने तो कभी कुछ झूठ नहीं कहा था
चलो अच्छा हुआ जो खत्म हुआ
वैसे भी क्या वो सिलसिला था
वक्त तब भी यूँ ही गुज़र जाता था
वक्त यूँ ही अब भी गुज़र जाता है
तब भी वो हमारा साथ निभाता था
अब भी वो हमारा साथ निभाता है
बहते हुए दरिया को थामने की कोशिश मत करना यारों
हर किसी के नसीब में कहाँ ये मंज़र आता है
दर पर जा बैठा है फ़कीर आज रकीब के
दुआएं दिए जाता है बलाएँ लिए जाता है
बेकार ही तू उसकी तमन्ना में बेज़ार है-ऐ-दिल
कब किसी माली के नसीब में कोई फूल आता है
क्या कभी देखा है आइना तुमने
कौन है जो तुम्हारे लिबास
में नज़र आता है
चलो आज शाम अपने साथ बैठेंगे
बातें करेंगे--मुस्करायेंगे
और सब कुछ भूल जाएंगे
भूल जायेंगे, भूल जायेंगे