Friday, March 27, 2009

आरज़ू घर के बूढों कि

आंखों आंखों रहे और कोई घर न हो!
ख्वाब जैसा किसी का मुकद्दर न हो !
क्या तमन्ना है रोशन तो सब हों मगर ,कोई मेरे चरागों से बढ़कर न हो !
रौशनी है तो किस काम कि रौशनी ,आँख के पास जब कोई मंज़र न हो !
क्या अजब आरज़ू घर के बूढों कि है,शाम हो तो कोई घर से बाहर न हो !

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