Tuesday, May 27, 2008
गुर्ज़र आन्दोलन
अगर गुर्ज़रों की ही तरह इस देश मे कुछ और समुदाय भी इसी तरह मांग करने लगें तो ......
उसके बाद कुछ और, फ़िर कुछ और...
क्या होगा आख़िर तब
आज गुर्ज़रों की मांग के रूप मे हमारे सामने आराक्चन का एक भयावह पछ सामने आया है
गुर्ज़रों की मांग और उनके आन्दोलन से उत्पन्न हिंसा हमें दिखाती है की मंडल के दौर के साथ हमारे सामने जो लोलीपॉपरखा गया था वो वास्तव मे एक मीठे जहर का बना हुआ था।जिससे हम चाह के भी छुटकारा नहीं पा सकेंगे और धीरे धीरे हमारा समाज पंगु होता जाएगा, इस आशा के कारण की arachan की लाठी का सहारा पाकर हम भी आगे जायेंगे
ज़रा सोचो क्या बैशाखी के सहारे कोई
Tuesday, May 20, 2008
लड़की
एक लड़की,खोल खिड़की
गै थी भाग,खेलने के लिए
पर
वह नन्हा ह्रदय
डर रहा था,
अपनी माँ के खौफ से।
फ़िर भी-
उसकी अंतरात्मा उसको उत्साहित कर रही थी
एक अंजना अवलंबन पाकर,
जुट गै वह खेकने मे।
चौंक पड़ी वह अपना नाम सुनकर अचानक
शायद
किसी ने पुकार दी थी?
हाँ,
यह उसकी माँ के क्रोध का प्रभंजन था
वास्तव मे,
उश्की माँ ने पुकार दी थी उसे
कांपता ह्रदय
खड़ा हो गया माँ के सामने,
माँ की क्रोध्पूरित नेत्रों की शिकार
देख रही थी पिता को वह
अचानक.....
पिता रूद्र मे बदला
एक... दो...
कई चीखें रोक रही थीं छड़ी को
मगर.....
फ़िर भी ख़त्म नाही हुआ यह कहर
अंत मे...
माँ के इशारों पर
काम करती रही वह
जुट गै थी माँ की तयारियों मे
क्योंकि
उदघाटन करना था इन्हें
किसी बालिका विद्यालय का
एक कप चाय पहुँचनी थी पिता को
क्योंकि
बल मनोविज्ञान पर लेक्चर देने के लिए वह
स्क्रिप्ट तैयार कर रहे थे ।
अंत में...
माँ जा चुकी थी,
पिता लिख रहे थे ,
और वह बढ़ रही थी.......
जूठे बर्तनों की तरफ़।
द्वारा:
Wednesday, May 14, 2008
एक सीख
कदम यकीन मे मंजिल गुमांन मे रखना
जो साथ है वाही घर का नसीब है पर
जो खो गया है उसे भी मकान मे रखना
चमकते चाँद सितारों का क्या भरोसा है
ज़मीन की धूल भी अपनी उडान मे रखना
सवाल बिना मेहनत के हल नाही होते
नसीब को भी मगर इम्तहान मे रखना।
philosophy of life
he who is over cautious about himself
falls into
dangers at every step,
he who afraid of losing
honour & respect
gets only disgrace,
he who is always
afraid of loss always loses.
by:swami vivekanand
सैनिक व नेता
यह नेता है,
वह देश को सब कुछ देता है,
यह देश का सब ले लेता है,
वह पेट खलाये लड़ता है,
यह पेट फुलाए बैठा है,
वह भी रक्त बहाता है,
यह भी रक्त बहाता है,
फर्क?
फर्क सिर्फ़ इतना है
वह रिपु का रक्त बहाता है,
यह अपनों को ही लड़वाता है।
वह त्याग बलिदान का दीवाना,
यह वोट दान का परवाना.
वह स्वतंत्रता का पुजारी है,
पर यह सत्ताधारी है।
फ़िर
अंत समय जब आता है,
वह भी मर जाता है,
यह भी मर जाता है,
फर्क?
फर्क सिर्फ़ इतना है,
वह शत्रु की गोली खाता है,
पर यह चारा ही खा जाता है,
वह मर कर इतिहास बनाता है,
यह कांड व घोटाले छोड़ जाता है।
वह अमर शहीद कहलाता है,
यह सी बी आई जांच मे फंस जाता है।
वह मातृभूमि की मिटटी मे मिल जाता है,
यह पक्की कब्र बनवाता है।
द्वारा:कौशलेन्द्र