लो फ़िर आ गईं चुनावी बहारें,
सजने लगीं झंडियाँ, बंटने लगे पर्चे
हर तरफ़,हर गली में हैं सियासत के चर्चे
ऐसे मे गाँव में मंत्री जी आए,
संग में अपने हैं पोटली लाये
पोटली में हैं वादे भरे,जो चुनाव बाद लगते मसखरे
नेता जी ने इलाके में जुलूस बुलाया
बड़े से मंच पर आसन जमाया
फ़िर बोले,
बोले तो फ़िर बोलते गए
वे बोले,"मेरा वादा है की इस इलाके के लिए सड़क बनवाऊंगा"
तभी भीड़ से एक आदमी खड़ा हुआ
और बोला,
"और उसमे का दो तिहाई पैसा ख़ुद खा जाऊंगा"
मंत्री जी बोले,
"यहाँ एक अस्पताल बनेगा"
दूसरा बोला,
"जिसका निर्माण कार्य उद्घाटन से आगे नहीं बढेगा"
मंत्री जी बोले,
"गाँव तक बिजली का कनेक्शन आ जाएगा"
तीसरा बोला,
"और बिना बिज़ली आए जो बिल आयेगा,वो भरने क्या तू आएगा"
आख़िर मंत्री जी का धर्य दे गया जवाब
उनका विकासवादी चुनावी अभियान हो गया ख़राब
अब उन्होंने पैंतरा बदल डाला,
ख़ुद को फ़िर से पुराने रंग में रंग डाला
बोले,
"मेरी जाती के लोगों,धर्म के साझेदारों
चिंता न करो , सब को आराक्चन दिलवाऊंगा
और तुम्हारे देवता के नाम का मन्दिर भी बनवाऊंगा
अबकी जनता कुछ न बोली
सुनती रही न जी की ठिठोली
आख़िर नेता जी अपना रंग जमा गए
जनता ताली बजती रही
और वे उसे अंगूठा दिखा गए
चुनाव के बाद मंत्री जी विजयी हो गए थे
क्योंकि,
वे जनता में साम्प्रदायिकता के बीज
पहले से ही बो गए थे।
द्वारा:कौशलेन्द्र
Monday, June 30, 2008
Wednesday, June 25, 2008
गोमती सफाई अभियान
पिछले कुछ दिनों से गोमती की सफाई के लिए किए गए सरकारी, गैर सरकारी ,व व्यक्तिगत स्तर पे किए गए प्रयास निश्चय ही सराहने योग्य हैं। जरा देखिये मात्र थोड़े प्रयास से ही गोमती का रूप कितना बदल गया है.अगर इसी तरह हम सभी अपनी जिम्मेदारियों को समझ सकें और किंचित मात्र भी योगदान दे सकें तो निश्चय ही हम अपनी गोमती को अपने शहर को खूबसूरत बना सकते हैं.कुछ नहीं तो इतना ही कर लें की अपनी तरफ़ से कोई गन्दगी उसमे न जाने पाए.अगर इस शहर का हर आदमी इतना सा ही कर सका तो गोमती ही क्या पूरा शहर ही खूबसूरत दिखने लगेगा। और हाँ इस गोमती अभियान ने साबित किया है की हमारे अख़बार सामाजिक परिवर्तन की नै इबारत लिखने मे क्या भूमिका निभा सकते हैं।आशा करता हूँ की हमारे पत्रों द्वारा इस तरह के मुद्दे आगे भी सामने लाये जायेंगे और जनता भी अपनी भूमिका इसी तरह निभाएगी। सरकार की तरफ़ से भी इस दिशा मे उठाया गया कदम प्रशंसनीय है।
यकीं मानिये गर हम इस तरह साथ मे मिल कर काम करें तो अपनी धरा को आगे आने वाले कई संकतो से बचा सकते हैं।
द्वारा:कौशलेन्द्र
यकीं मानिये गर हम इस तरह साथ मे मिल कर काम करें तो अपनी धरा को आगे आने वाले कई संकतो से बचा सकते हैं।
द्वारा:कौशलेन्द्र
सुबह का अखबार
सुबह सुबह जब आँख खुली तो
सामने पड़ा अखबार मिला,
खोला उसको हर पन्ने पर, क्रंदन हाहाकार मिला
कहीं पे दुश्मन ने मारा था,कहीं दोस्त मक्कार मिला
कहीं खेत खलिहान जले थे,कृषक सदा बेहाल मिला
हर तरफ़ थे भूखे नंगे, पर देश तो मालामाल मिला
देश के रक्षा सौदे मे,नेता है गद्दार मिला
विकाश की योजनाओ मे, अधिकारीयों का भ्रष्टाचार मिला
कहीं पे भाषाई दंगे थे, कहीं फैला छेत्रवाद मिला
देश के अन्दर अंगडाई लेता,मुझको एक अलगाव मिला
कल तक था डाकू कहलाता,वो आज बना सरकार मिला
जो ख़ुद ही अनपढ़ था, उसे शिक्षासुधर का भारमिला
कहीं दूर एक कोने मे मानवता का यार मिला
सुबह की एक कप के साथ मे, मुझे जगत का सार मिला
द्वारा:कौशलेन्द्र
सामने पड़ा अखबार मिला,
खोला उसको हर पन्ने पर, क्रंदन हाहाकार मिला
कहीं पे दुश्मन ने मारा था,कहीं दोस्त मक्कार मिला
कहीं खेत खलिहान जले थे,कृषक सदा बेहाल मिला
हर तरफ़ थे भूखे नंगे, पर देश तो मालामाल मिला
देश के रक्षा सौदे मे,नेता है गद्दार मिला
विकाश की योजनाओ मे, अधिकारीयों का भ्रष्टाचार मिला
कहीं पे भाषाई दंगे थे, कहीं फैला छेत्रवाद मिला
देश के अन्दर अंगडाई लेता,मुझको एक अलगाव मिला
कल तक था डाकू कहलाता,वो आज बना सरकार मिला
जो ख़ुद ही अनपढ़ था, उसे शिक्षासुधर का भारमिला
कहीं दूर एक कोने मे मानवता का यार मिला
सुबह की एक कप के साथ मे, मुझे जगत का सार मिला
द्वारा:कौशलेन्द्र
Sunday, June 22, 2008
कुछ हसरतें
साथ तो चले थे मगर जाने कब जाने कब तुम दामन छुडा बैठे
गिला गर था कोई तो हमसे कहा होता
यूँ गैरों से शिकवा तो न किया होता
रंजिशें कुछ तो और बढ़ाई होती
अधूरे इश्क की तरह अधूरी दुश्मनी तो निभाई होती
ना था इश्क मुझसे न सही औरों से दोस्ती तो न बढ़ाई होती
तेरे ही ख्वाबों में रात गुजरती है तेरे ही अरमान से सेहर होती है
कम से कम अपनी चाहत तो मेरे दिल से मिटाई होती
मैंने कई अरमां सजा रखे थे अपनी पलकों पे
जाने से पहले इन्हें आग तो लगाई होती
रास्ते अलग करने से पहले
मुझे मेरी मंजिल तो बताई होती
तेरे ही अरमानों से सजा रखे थे मैंने अपने दरों-दीवार
जाने से पहले इस समशान में इनकी लाश तो दफनाई होती
शिकवे करने के लिए गैरों के पास जाने की जरूरत क्या थी
कभी अपनों के सामने तो बात उठाई होती
दर्द तेरे बख्शे हुए ज़ख्मों का नहीं
तकलीफ तो तेरी दी हुई खुशियाँ देती हैं
तेरे साथ गुज़ारा हर लम्हा याद है मुझे
जाने से पहले मेरे जेहन में बसी अपनी चाहत की इबारत तो मिटाई होती
मुझे बर्बाद ही करना था तो मुझसे सिर्फ एक बार कहा होता
यूँ जहाँ में तेरी रुसवाई तो न होती
मालूम है मुझे कुछ मजबूरियाँ रही होगीं तेरी
पर मुझसे अपनी हालत तो न छुपाई होती
मैं तेरा प्यार नहीं न सही;तलबगार तो हूँ
अपने आशिक की ये हालत तो न बनाई होती
गिला गर था कोई तो हमसे कहा होता
यूँ गैरों से शिकवा तो न किया होता
रंजिशें कुछ तो और बढ़ाई होती
अधूरे इश्क की तरह अधूरी दुश्मनी तो निभाई होती
ना था इश्क मुझसे न सही औरों से दोस्ती तो न बढ़ाई होती
तेरे ही ख्वाबों में रात गुजरती है तेरे ही अरमान से सेहर होती है
कम से कम अपनी चाहत तो मेरे दिल से मिटाई होती
मैंने कई अरमां सजा रखे थे अपनी पलकों पे
जाने से पहले इन्हें आग तो लगाई होती
रास्ते अलग करने से पहले
मुझे मेरी मंजिल तो बताई होती
तेरे ही अरमानों से सजा रखे थे मैंने अपने दरों-दीवार
जाने से पहले इस समशान में इनकी लाश तो दफनाई होती
शिकवे करने के लिए गैरों के पास जाने की जरूरत क्या थी
कभी अपनों के सामने तो बात उठाई होती
दर्द तेरे बख्शे हुए ज़ख्मों का नहीं
तकलीफ तो तेरी दी हुई खुशियाँ देती हैं
तेरे साथ गुज़ारा हर लम्हा याद है मुझे
जाने से पहले मेरे जेहन में बसी अपनी चाहत की इबारत तो मिटाई होती
मुझे बर्बाद ही करना था तो मुझसे सिर्फ एक बार कहा होता
यूँ जहाँ में तेरी रुसवाई तो न होती
मालूम है मुझे कुछ मजबूरियाँ रही होगीं तेरी
पर मुझसे अपनी हालत तो न छुपाई होती
मैं तेरा प्यार नहीं न सही;तलबगार तो हूँ
अपने आशिक की ये हालत तो न बनाई होती
Saturday, June 21, 2008
यह है मुंबई मेरी जान
भागते-दौड़ते लोग, रुकी-रुकी सी जिन्दगी
हर तरफ़ बेशुमार भीड़, तनहा-तनहा आदमी
हर तरफ़ शोर ही शोर, फ़िर भी खामोश हर जुबान
हर तरफ़ इंसान ही इंसान, इंसानियत गुमनाम
हर किसी को मंजिल की तालाश, हर कोई रास्तो से अनजान
हर तरफ़ जगमगाती रौशनी, हर दिल में अँधेरा
हर तरफ़ खुशियों की दुकान, हर तरफ़ गमगीन इंसान
आसमान छूती इमारतें, जमीन में धंसता जाता इंसान
हर किसी की है पहचान, हर कोई एक दूसरे से अंजान
यह है मुंबई मेरी जान
हर तरफ़ बेशुमार भीड़, तनहा-तनहा आदमी
हर तरफ़ शोर ही शोर, फ़िर भी खामोश हर जुबान
हर तरफ़ इंसान ही इंसान, इंसानियत गुमनाम
हर किसी को मंजिल की तालाश, हर कोई रास्तो से अनजान
हर तरफ़ जगमगाती रौशनी, हर दिल में अँधेरा
हर तरफ़ खुशियों की दुकान, हर तरफ़ गमगीन इंसान
आसमान छूती इमारतें, जमीन में धंसता जाता इंसान
हर किसी की है पहचान, हर कोई एक दूसरे से अंजान
यह है मुंबई मेरी जान
Tuesday, June 17, 2008
ज़रा सोचिये
गत कुछ दिनों से समाचार पत्रों में उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों मे धरती के फटने की खबरें आ रही हैं। शायद हम सबने इतने दिनों तक इस वसुंधरा के अस्तित्व से जो खिलवाड़ किए हैं उसका प्रभाव आना दिखने लगा है। लेकिन अफ़सोस की बात यह है की अभी तक न तो प्रशासन ने इस तरफ़ समुचित ध्यान दिया है और न ही आमजन।
मानसून की जल्दी आवक की खुशी मे सभी इतना मगन हैं की उन्हें इस अति चिंतनीय बात पर विचार करने का समय ही नहीं है। अब तक हम अपने पर्यावरण के साथ जो खिलवाड़ करते आए है उसके जो प्रभाव अब तक दिखे यह उन सबसे कहीं बढ़कर है। क्योंकि अगर इसी तरह मौसम मे बदलाव होता रहा और धरती पर इसी तरह के प्रभाव पड़ते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब पूरा विश्व बुंदेलखंड मे तब्दील हो जाएगा
मानसून की जल्दी आवक की खुशी मे सभी इतना मगन हैं की उन्हें इस अति चिंतनीय बात पर विचार करने का समय ही नहीं है। अब तक हम अपने पर्यावरण के साथ जो खिलवाड़ करते आए है उसके जो प्रभाव अब तक दिखे यह उन सबसे कहीं बढ़कर है। क्योंकि अगर इसी तरह मौसम मे बदलाव होता रहा और धरती पर इसी तरह के प्रभाव पड़ते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब पूरा विश्व बुंदेलखंड मे तब्दील हो जाएगा
Monday, June 9, 2008
एक सुबह
एक बार फ़िर सुबह हो चुकी है
फ़िर सब के जगने का वक़्त आ गया है,
हर सुबह के sath घर मे एक नया अख़बार आता है,देश दुनिया के बरे मे सबको जगाने सब को बताने की क्या कुछ हो रहा है हमारे इस जहाँ मे'
पर हम ने न जगने की कसम खा रखी है,
हम सिर्फ़ अख़बार पढ़ के एक किनारे रख देते हैं ,और फ़िर उसमे लिखिघटनाओ को भूल जाते हैं,फ़िर ने सुबह नया अख़बार नई खबरें,लेकिन हम उन ख़बरों पर कितना विचार करते हैं,क्या हम उन घटनाओं से अपने समाज का कोई रूप जानने की कोसिस करते हैं,क्या हम जानने का प्रयत्न करते हैं की घटनाओं के दूरगामी परिदम क्या होंगे ,
फ़िर सब के जगने का वक़्त आ गया है,
हर सुबह के sath घर मे एक नया अख़बार आता है,देश दुनिया के बरे मे सबको जगाने सब को बताने की क्या कुछ हो रहा है हमारे इस जहाँ मे'
पर हम ने न जगने की कसम खा रखी है,
हम सिर्फ़ अख़बार पढ़ के एक किनारे रख देते हैं ,और फ़िर उसमे लिखिघटनाओ को भूल जाते हैं,फ़िर ने सुबह नया अख़बार नई खबरें,लेकिन हम उन ख़बरों पर कितना विचार करते हैं,क्या हम उन घटनाओं से अपने समाज का कोई रूप जानने की कोसिस करते हैं,क्या हम जानने का प्रयत्न करते हैं की घटनाओं के दूरगामी परिदम क्या होंगे ,
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