Monday, September 22, 2008
ज़मीनी हकीकत
Wednesday, September 10, 2008
विवि की प्रवेश प्रकिया पर प्रश्नचिन्ह
लखनऊ विवि की सत्र ०८-०९ के लिए हुई प्रवेश प्रक्रिया मे इस बार हुई अफरा तफरी व घोर अव्यवस्था ने पारदर्शिता से प्रवेश करवाने के विश्वविद्यालय प्रशासन के सारेदावों की असलियत सामने ला दी। पूरी प्रवेश प्रक्रिया प्रवेशार्थी छात्रों के लिए कई परेशानी खड़ी करती दिखी। प्रवेश प्रक्रिया काफी देर तक चलती रही,व्यावसायिक पाठ्यक्रमों मे प्रवेश को लेकर काफी उठापटक हुई, फार्म के साथ दी गई सूचना पुस्तिका सारी जानकारी देने की जगह विवादस्पद निर्देशों से युक्त थी। कई सारी सूचनाएँ छात्रों को समयानुसार नही दी गईं जिससे कुछ छात्र तो फार्म न दाल सके और कुछ मेरिटलिस्ट मे होते हुए भी प्रवेश से वंचित रह गए।
काउंसिलिंग के समय का नज़ारा देखने योग्य था,इसे देख कर कोई भी सहज ही प्रवेश प्रक्रिया मे हो रही गड़बडियों का अंदाजा लगा सकता था। कितनी सीटें भरी व कितनी खली हैं इसकी कोई अधिकारिक जानकारी पाना बहुत ही कठिन काम था। नियमित सीट के लिए योग्य छात्र को स्ववित्त पोषित सीट दी गई कई तो खड़े रहे और उनका नाम तक नहीं पुकारा गया। मेरिट सूची मात्र एक या दो दिन पहले निकली जाती थी ।
अगर विवि इसके लिए बहानेबाजी करता है तो उसे अपने ही इतिहास के पन्ने पलट कर पिचले सत्र मे नए परिसर मे हुई व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की प्रवेश प्रक्रिया को देखना चाहिए वो शायद नजीर का काम करेगा। क्योंकि पिछाले साल से विवि के प्रति लोगों का जो नजरिया बदला था वह फ़िर पुरानी पटरी पर लौट गया और वाही ढ़ाक के तीन पात रह गए।
सोचने वाली बात है की अगर इसी तरह चला तो कितने मेधावी छात्र विवि मे प्रवेश लेना चाहेंगे , हमे बनारस व दिल्ली विवि की तरह के छात्र क्यों मिलेंगे। इसलिए अगर विवि को उसका गौरव लौटना है तो इन सब अव्यवस्थाओं पे काबू पाना ही होगा।
Sunday, September 7, 2008
सच कहते न बना
तो मुझसे सच कहते न बना
कह तो देता कि शायद
तू बेवफा हो गया है
पर तेरी रुसवाई का इल्ज़ाम
अपने सर लेते न बना
काश कि तू सामने होता
तो निकाल लेता दिल का गुबार
गैरों के सामने तुझे बुरा कहते न बना
कभी सामने बैठोगे तो सुनाऊंगा
हाल-ए-दिल और किसी से कहते न बना
तुने तो बना लिया है एक गैर अपना
मुझसे तो तेरे जाने के बाद
किसी को भी अपना कहते न बना
Saturday, September 6, 2008
एक संदेश
अपनी बात सुनाता हूँ,
जीवन के हर इकपल को मैं
मस्ती से जीता जाता हूँ,
कुछ खुशियाँ हैं, तो कुछ गम भी हैं,
कुछ खोया है कुछ पाया है,
इस छोटी सी दुनिया मे धूप छांव का साया है।
पर किसे फिकर,न कोई डर,
क्या कुछ होने वाला है,
मंजिल कि खोज मे निकल पड़ा जो,
वो राही तो मतवाला है।
अब नयी मंजिलें छूनी हैं,
कुछ रचने नए फ़साने हैं,
छोड़ पुरानी बातें हमको,गाने नए तराने हैं।
पग पग आगे बढ़ना है,
बाधाओं से लड़ना है,
भूली बिसरी यादें ले संग,नए दौर मे चलना है।
हर तरफ़ जहाँ हों फैली खुशियाँ,
गम का जहाँ न मिले निशां,
इक ऐसी दुनिया रच डालें हम,
जहाँ हो सबका बस इक जहाँ।
बस यही संदेशा देने सबको,दूर गाँव से आया हूँ,
अमन,शान्ति और विश्व बंधुत्व का एक संदेशा लाया हूँ।