amar:
पंखों को मत खरोचो, पंखो में क्या मिलेगाउड़ जायेंगे हम यूं ही, गर जज़्बा बुलंद होगा:
गिर भी गए अगर हम, उन बुलंदियों को छूकर;
तुम ही कहोगे देखो, बुलंदियों से गिरा होगा:
हम तो सफ़र करेंगे शोलों में ढल के लेकिन;
हम छू गए जो तुमसे अपनी कहो क्या होगा..........
अमर नाथ ललित