Monday, December 15, 2008

एक आवाज़

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पंखों को मत खरोचो, पंखो में क्या मिलेगा
उड़ जायेंगे हम यूं ही, गर जज़्बा बुलंद होगा:

गिर भी गए अगर हम, उन बुलंदियों को छूकर;
तुम ही कहोगे देखो, बुलंदियों से गिरा होगा:

हम तो सफ़र करेंगे शोलों में ढल के लेकिन;
हम छू गए जो तुमसे अपनी कहो क्या होगा..........

अमर नाथ ललित

2 comments:

Puneet Sahalot said...

khoob likha hai aapne...
padhkar bahut achha laga... :))

Hemant said...

wahi hoga jo sholon ke sholon se choo jaane se hota hai