amar:
पंखों को मत खरोचो, पंखो में क्या मिलेगाउड़ जायेंगे हम यूं ही, गर जज़्बा बुलंद होगा:
गिर भी गए अगर हम, उन बुलंदियों को छूकर;
तुम ही कहोगे देखो, बुलंदियों से गिरा होगा:
हम तो सफ़र करेंगे शोलों में ढल के लेकिन;
हम छू गए जो तुमसे अपनी कहो क्या होगा..........
अमर नाथ ललित
2 comments:
khoob likha hai aapne...
padhkar bahut achha laga... :))
wahi hoga jo sholon ke sholon se choo jaane se hota hai
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