शहर की भीड़ में बच्चों से खो गए रिश्ते।
सुलग रहा है हर एक घर सुलग रहा आँगन
दिलों में ऐसे कोई आग बो गए रिश्ते।
मेरा ख्याल था महकेंगे ताजगी देंगे
मगर ख्याल में कांटे चुभो गए रिश्ते
मेरा वजूद जला कर खिसक गए तो भी
जरा सी देर मे लो ख़ाक हो गए रिश्ते।
हरेक रात आंसुओं से भरी होती है
लिपट कर मुझसे मेरे साथ सो गए रिश्ते।
साभार:अनजान लेखक
No comments:
Post a Comment