मुझे अपने ग़मों से
कुछ इस कदर मोह्हबत हो गई है कि
हर खुशी अब एक मुसीबत हो गई है
चाहतों के पुलिंदों को वक्त के जिस दरिया में बहा आया था
उस दरिया में आज जाने क्यों उफान आया है
बना ली थी आस पास अपने दुनिया की दीवार
जाने कहाँ से फ़िर ये यादों का तूफ़ान आया है
जाने आज क्या कहने
आंखों के रेगिस्तान में
गुज़रे हुए पलों की
बारिशों का पैगाम आया है
निकला था जो मुसाफिर मंजिल की तलाश में
लौट के घर आज शाम आया है
नहीं किया थे जिसने कभी शिकवा कोई
दोस्त वो लेकर जुबान आया है
बेफिक्र होकर सोते थे जिसके पहलु में हम
यार वो लेकर खंजर सरे आम आया है
यकीं नहीं होता है फिर भी सच है
कि जिसने सिखाया थ जीना
उसी के हाथों मौत का पैगाम आया है
Friday, February 13, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment