Wednesday, October 28, 2009

प्रश्नचिन्ह

हर प्रश्नचिन्ह तलाशता है

एक सटीक उत्तर

तभी पूर्णता को प्राप्त करता है

जब उसका अस्तित्व

उत्तर से संतृप्त हो जाता है,

प्रश्नचिन्ह प्रतीक हैं-

अन्धकार के अज्ञान के

क्योंकि ज्ञान प्राप्त होते ही

हटा लिए जाते हैं , वाक्य के अंत से,

कभी कभी प्रश्नचिन्ह बन जाते हैं,

एक अबूझ पहेली

जितना ही सुल्झाओगे

उलझते धागों की तरह

बना देते हैं जीवन बेतरतीब

जंगल में उगी वनस्पतियों की तरह
प्रश्नचिन्ह अकारण आते हैं जीवन मे
और बदल देते हैं सोचने के तरीके

डाल देते हैं भूचाल मन के अंदर
उद्विग्न मन दौड़ पड़ता है
इनका समाधान खोजने
और ज्यों ही मिलता है उत्तर
कुलबुलाकर नया प्रश्नचिन्ह
खड़ा हो जाता है , उत्तर की अपेक्षा मे
और जिंदगियां बीतती जाती हैं
इन प्रश्नचिन्हों के उत्तर की तलाश मे।

साभार: बी डी पाण्डेय

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