मंत्री काटें खूब मलाई,अधिकारी की भी है कमाई,
फिर चपरासी की चाय पे हंगामा क्यूँ होता है.
खीझे हुए हैं सब पुलिस से, त्रस्त भी हैं सब पुलिस से,
फिर भी उनके दर पे जाना क्यूँ होता है.
पुलिस यहाँ की अत्याचारी, पुलिस ही है चोर अब,
फिर हर बस्ती मे थाना क्यूँ होता है.
शिकार भी हैं हमीं, हम मे ही हैं शिकारी,
फिर भी रिश्वत खाना और खिलाना क्यूँ होता है.
कोई यहाँ बेदाग़ नहीं, है कोई भी शाह नहीं ,
फिर भी गड़बड़ होने पर मन क्यूँ रोता है.
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