जरूरत नहीं मुझे किसी के साथ की
हसरत हूँ मैं ख़ुद सारी कायनात की
दूर जाकर मुझसे वो समझते हैं कि
मिट गया हूँ मैं
गर महसूस कर के देखेंगे तो जान जायेंगे कि
आज भी उनकी साँसों के सिवा कहीं नहीं गया हूँ मैं
आज भी वो आईने पे
अपनी साँसों की स्याही से
नाम मेरा लिखते हैं
कहते नहीं हैं मुझसे पर
शाम के सूरज के हाथों मुझे अपनी
आंखों का हाल लिखते हैं
हर आते जाते मुसाफिर में
चेहरा मेरा ढूंढते हैं
ठान रखी है मुझसे फ़िर न मिलने कि
पर वो ठिकाने मुझसे मिलने के हर जगह ढूंढते है
जाने कब ये मानेंगे कि
वो आज भी मुझमे अपने
आने वाले कल को ढूंढते हैं
Saturday, November 15, 2008
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