कौन जाने कौन क्या था
वक्त ही शायद बेवफा था
छोड़ दिया जिसको हमने अंजान समझ
वही शायद जिन्दगी का रास्ता था
बयाँ नहीं कर पाया कभी किसी से हाल-ऐ-दिल
मुझे उसकी मोह्हबत का वास्ता था
धोखा खाया है हमने अपने आप से
उसने तो कभी कुछ झूठ नहीं कहा था
चलो अच्छा हुआ जो खत्म हुआ
वैसे भी क्या वो सिलसिला था
वक्त तब भी यूँ ही गुज़र जाता था
वक्त यूँ ही अब भी गुज़र जाता है
तब भी वो हमारा साथ निभाता था
अब भी वो हमारा साथ निभाता है
बहते हुए दरिया को थामने की कोशिश मत करना यारों
हर किसी के नसीब में कहाँ ये मंज़र आता है
दर पर जा बैठा है फ़कीर आज रकीब के
दुआएं दिए जाता है बलाएँ लिए जाता है
बेकार ही तू उसकी तमन्ना में बेज़ार है-ऐ-दिल
कब किसी माली के नसीब में कोई फूल आता है
क्या कभी देखा है आइना तुमने
कौन है जो तुम्हारे लिबास
में नज़र आता है
चलो आज शाम अपने साथ बैठेंगे
बातें करेंगे--मुस्करायेंगे
और सब कुछ भूल जाएंगे
भूल जायेंगे, भूल जायेंगे
Thursday, March 12, 2009
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1 comment:
kameene aakir dilme tees ubhar hi aati hai
lage raho
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