अब जब कि हसरत नही है कोई
जिन्दगी आसान हो गई है
किसी कि मेहरबानियों से
अब हमें भी अब लोगों की पहचान हो गई है
वक्त गुज़रा नही है बहुत अभी
पर दूर थकान हो गई है
सफर मुक्कमल भले न हुआ हो
पर रास्तों से अच्छी जान-पहचान हो गई है
मिलते हैं साथी आज भी पुरानी राहों के
बताने के लिए कि कैसे किस्मत उनपर मेहरबान हो गई है
जिन मकानों में कभी मन्दिर बसते थे
उनकी पहचान अब दुकान हो गई है
यार जो मिलते थे अफसानों की तरह
अब वो सिर्फ़ ख़्वाबों में नज़र आते हैं
दर्द-भरे अफसानों की तरह
गुमान था हमें जिनकी मोह्हबत पर दीवानों की तरह
अब वो हमसे मिलते हैं बेगानों की तरह
ये बात हम समझ नहीं पाएं हैं आज भी कि
पूजते थे जिसे हम खुदा कीतरह
बदलली है उसने फितरत अपनी इंसानों कि तरह
Tuesday, January 13, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
kya mast likha hai bhaiya
lage rahiye
Post a Comment