''क्यों रूका जब दूर तक दिखता नहीं आसार
आज तेरा आत्म तुझको खुद रहा धिक्कार
ओ ! नहुष के अंश तू क्यों शोक संतप्त ?
डबडबाई आंखों से दिखता कहां संसार "
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1 comment:
shabd sangathan anootha hai
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