Friday, August 7, 2009

मिलना कोई जरूरी तो नही

मिलना कोई जरूरी तो नहीं

बात करना भी कोई जरूरी तो नहीं

मिल के भी नहीं मिल पाये वो हमसे

फ़िर भी दिलों में कोई दूरी तो नहीं

उनकी हर एक बात है याद हमें इबादत की तरह

उनसे दूर जाने के लिए

उनकी यादों को मिटाना जरूरी तो नहीं

हर तरफ़ बिखरा है जो खुशबू की तरह

उसका ख़ुद आना जरूरी तो नहीं

हर वक्त करूँ प्यार का इज़हार

ऐसी भी क्या मजबूरी है

जो बात झलकती हैं आंखों से

उसे शब्दों में बताना जरूरी तो नहीं

वो भले ही भूल जायें हमको

पर हम उन्हें याद भी न आयें

ये जरूरी तो नहीं

जानता हूँ कि न मिल पाएंगे वो अब मुझको

पर मैं उन्हें पाने कि ख्वाहिश भी न

मेरी कोई मजबूरी तो नहीं

न कर पाए वो वफ़ा हमसे

जरूर कोई मजबूरी रही

होगीपर मैं उनसे बेवफाई करूँ

मेरे प्यार में ऐसी कोई कमजोरी तो नहीं

न मिल पाया मेरे प्यार को किसी रिश्ते का नाम न सही

मेरे इश्क के मुक्कमल होने के लिए

ज़माने की मंजूरी ज़रूरी तो नहीं