वक्त वह भी था- गुज़र गया
वक्त ये भी है गुज़र - जाएगा
ख्वाबों के महलों में रहने वाले
तू ख्वाबों सा ही बिखर जाएगा
क्यों तुझे सताती है याद उस शहर
वहां अब कौन है तेरा - तू किसके घर जाएगा
अनजान राहों में मंजिल तलाशने वाले
सम्हल कर रहना वरना फ़िर से धोखा खाएगा
भागता फिरता है तू जिन सायों के पीछे
एक दिन उन्हीं के अंधेरों में गुम हो जाएगा
मंजिलों के फेर में मत पड़
तू मुसाफिर है मुसाफिर सा ही रह
वरना अपने आप से भी जुदा हो जाएगा
शबे फुरकत भी गुज़र जायेगी
शबे कुरबत सी ही
जो गया था तुझे छोड़कर अकेला
वो अकेला ही तेरे पास आयेगा
ढलते हुए सूरज से यारी रख ऐ दोस्त
गर उगते हुए सूरज के पीछे भागा
तो तू भी इसी भीड़ का हिस्सा हो जायेगा
नहीं मिलती राहत गर महफिलों में
तो दिल लगा तनहाइयों से
वरना तू भी मेरी तरह
यार की गलियों का बंजारा हो जायेगा
बस्तियां गर हैं वीराँ
तो आशियाँ बना जंगलों में
वरना तू बेघर बेसहारा हो जाएगा
तू नशे में है गर तो नशे में ही रह है
गर नशा उतरा तो तू भी
मेरी ही तरह बावरा हो जाएगा
साहिलों पर बैठकर ढूंढता है किनारे
एक बार दरिया में तो उतर कर देख
मझधार ही ख़ुद तेरा किनारा हो जाएगा
इश्क करना है तो कर अपने आप से
वरना तू भी दुनिया की नज़रों में बेचारा हो जाएगा
खुशियाँ कभी साथ नहीं निभाती ऐ दोस्त
हो सके तो कर ले ग़मों से यारी रख
कम से कम जीने का सहारा हो जाएगा
Saturday, August 29, 2009
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