बारिश की बूँद!
हवाओं के रथ पर सवार,
सागर का दामन छोड़कर,
गई थी बादल के पास,
शायद!
ये सोच कर की वही आशियाना होगा,
उसका।
और सागर शांत सा,
बस देखता रहा...
और वो चली गई थी,
अपने बादल के पास।
काफ़ी दिनों तक अठखेलिया करते हुए,
विचरती रही खुले आसमान में,
कभी तारो की महफ़िल में,
कभी चांदनी में,
मदहोश सी!
बादल की बाहों में,
उसी क आगोश में खोती चली गई...
और सागर बेचारा खामोशी से,
देख रहा था....
कभी ख़ुद को कोसता....
कभी अपनी नियति मान कर,
शांत हो जाता॥
उमड़ता रहा गरजता रहा॥
शायद तड़पन थी उसकी...
जो लहरों का रूप लेकर किनारे से टकरा रही थी॥
और फ़िर.....
बहारो ने रुख बदला,
घटाए छाई,
उस नासमझ को पता ही न चला,
और वो गिर रही थी,
अपने पल भर के आशियाने से.....
रोती हुई,बिलखती हुई.....
शायद पछता रही थी अपनी नादानी पर,
और बादल!
मुस्कराता हुआ,लहराता हुआ...
गुजर रहा था,
कोई दूसरी बूँद की तलाश में।
और वो बूँद,
शकुचाती हुई,शर्माती हुई,
धीरे धीरे बढ़ रही थी....
बढ़ रही थी,
सागर के पास,
और सागर,
अपनी बाहें पसारे,सब कुछ भुलाकर,
इंतज़ार कर रहा था,
अपनी प्यारी सी बूँद का!!!
Sunday, August 30, 2009
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1 comment:
Sie itani bhaukta kasam se mar jayenge log.
Thanks.
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