Saturday, November 15, 2008

उनकी नफरत

जरूरत नहीं मुझे किसी के साथ की
हसरत हूँ मैं ख़ुद सारी कायनात की
दूर जाकर मुझसे वो समझते हैं कि
मिट गया हूँ मैं
गर महसूस कर के देखेंगे तो जान जायेंगे कि
आज भी उनकी साँसों के सिवा कहीं नहीं गया हूँ मैं
आज भी वो आईने पे
अपनी साँसों की स्याही से
नाम मेरा लिखते हैं
कहते नहीं हैं मुझसे पर
शाम के सूरज के हाथों मुझे अपनी
आंखों का हाल लिखते हैं
हर आते जाते मुसाफिर में
चेहरा मेरा ढूंढते हैं
ठान रखी है मुझसे फ़िर न मिलने कि
पर वो ठिकाने मुझसे मिलने के हर जगह ढूंढते है
जाने कब ये मानेंगे कि
वो आज भी मुझमे अपने
आने वाले कल को ढूंढते हैं

No comments: