Friday, January 22, 2010

पाती ज़िन्दगी को

प्रिय ज़िन्दगी
वैसे तो मज़े मे हूँ पर मन वेदना मे है. तुमसे कुछ पूछना चाहता हूँ. अरे न गलत मत समझना कोई गोला शिकवा नहीं करूंगा बस कई सालो से मन मे कोई कीड़ा कुलबुला रहा है. आज सोचा की तुमसे ही पूछ लिया जाये.
तो शायद अब तुम तैयार होगे, पूछूँ मैं? मैं तुमसे पूछना चाहत हूँ की तुमने खुद को इतना बेतरतीब क्यों बनाया है? मेरा आशय तुम्हारी सुन्दरता को लेकर नहीं है मेरा आशय तुम्हारी व्यावहारिकता से है. अशल मे क्या व्यावहारिक होकर आदमी तुम्हारे साथ नहीं रह सकता. दुनिया मे हर व्यक्ति ज़िन्दगी जी रहा है, गुज़ार रहा है, काट रहा है या कहें धकेल रहा है. पर कहीं भी संतुष्टि नहीं है. कहीं भी सत्य नहीं है. ज़िन्दगी की असलियत तो मैं कई बार देख चूका हूँ सच देखना चाहता हूँ. हेर मोड़ पे अपनी एक नई अशलियत को परखता हूँ, फिर आगे बढ़ जाता हूँ.पर बड़ी तम्मना है अपने सच को देखने की. आखिर क्यों है इतना घोलमाल क्यों तुमने अपने आपको अनगिनत पन्नो मे छुपा रखा है. परत दर परत खुलती हो पहेलियाँ बुझाती हो. कहीं तुम्हे अपने उपर गाने और लेख लिखवाने का शौक तो नहीं चढ़ा है. वैसे ऐसा हो भी तो इतने दिनों बाद जब तुम्हारे बारे मे इतना  लिखा जा चुका है अब तो संतोष करो. इस दुनिया को सत्य दिखा दो.
तेज़ भागती इस दुनिया मे लोगों के चेहरे पर नित एक नई सूरत देख कर व्यथित हूँ मैं. खुद अपने आप से भी. क्यों हम सच को नहीं जी पते. क्या तुम्हे ही सच से नफ़रत है. अगर नहीं तो तुम इतना बेतरतीब क्यों हो की लोगों को रोज नए मुखौटे की ज़रुरत पड़ती है. आदमी के चेहरे पे आदमियत क्यों नहीं दिखती. वहां दिखती है तो सिर्फ मक्कारी, फरेब, झूठ, अहंकार और हंसी मुस्कराहट तो कभी कभार ही आती है उसमे भी कुटिलता. तुम क्यों ऐसी हो की लोग अपने आपको जैसे हैं उसी तरह रखें, मुखौटे की ज़रुरत न पड़े. मानता हूँ की तुम आदमी को तराशना चाहती हो पर ऐसा भी क्या तराशना की वह अपनी मौलिकता ही खो दे, आदमियत को ही भूल जाये.
ज़िन्दगी अगर हो सके तो जवाब देना. अब तक तुमने मुझे बहुत कुछ सिखाया है इतना और सिखा देना. वैसे तो दुनिया मे ज़िन्दगी पर बताने वालों की कमी नहीं पर फिर वही मुखौटे. सो अगर तुम ही मुझे बताओ तो बेहतर और हाँ सुना है की ज़िन्दगी इम्तहान लेती है. तो जो भी करना है ज़ल्दी करो, मेरे पास इतना धैर्य है नहीं कहीं रस्ते मे ही हौंसला न खो बैठूं
और हाँ हो सके तो थोडा खुद को भी सिम्पल कर लो. मेरा मतलब की लोगों से बहुत कठिन इम्तहान न लो, अब देखो न कितने इसी चक्कर मे तुम्हारा साथ छोड़ के निकाल लेते हैं. क्या तुम खुद इन्हें साथ नहीं रखना चाहते अगर हाँ तो मेरे इम्तहान के प्रश्नपत्र और कठिन तैयार करवा लो मुझसे इतनी जल्दी मुक्ति नहीं मिलनी. तो जवाब भेज देना जल्दी से, मेरा मतलब सबक सिखाओ मेरे मन की व्यथा मिटाओ.

1 comment:

god's on vaccation...BABA ANT-SHANT is d incharge!!!!! said...

क्या माकड़ भाई... ज़िन्दगी ना हो गयी साली....professor हो गयी.

हा हा

उम्दा पोस्ट ...

शुभ कामनाये...आपको नहीं...आपकी ज़िन्दगी को...बड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी तुम्हे फेल करने के लिए...