Sunday, January 24, 2010

क्यूँ होता है

क्यूँ होता है

मन जिसको अपना माने, सबसे बढ़कर जिसको जाने,
अक्सर ही वही बेगाना क्यूँ होता है.

काली काली छायें घटायें, रिमझिम बूँदें मन को रिझाएँ,
ऐसे मे अंधड़ का आना क्यूँ होता है.

माली चुन चुन फूल लगाये, खून पसीना खूब बहाए,
जब भी देखो बही बाग़ वीराना क्यूँ होता है.

जो अपना सर्वस्व लुटाये, किसी पे अपनी जान लुटाये,
उनका छलावा उससे ही फिर क्यूँ होता है.

पूरी दुनिया को जो हंसाये, खुद को ही मजाक बनाये,
उसी का दिल चुपके चुपके क्यूँ रोता है.

रोज किसी से रिश्ता तोडू, नित उससे फिर रार मैं छेडू,
फिर अंतर्मन उसका दीवाना क्यूँ होता है.

आखिर ऐसा क्यूँ होता है
क्यूँ होता है, क्यूँ होता है, क्यूँ होता है.

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