Wednesday, March 19, 2008

एक आरजू

"भगवान् करे ,
फूलों की खुशबुओं से भरी ,
तुम्हारी राहें हों ,
तुम्हे उमग कर अपने अन्दर
समेट लेने को,
अपनों की बाहें हों,
पर,
वहां जाकर भी नहीं भूलना,
उन बाँहों को,
जो तुम्हारे लिए,
अनायास उठ गई थीं,
भूलना नहीं उन आंखों को
जो अचानक ही
तुम्हारे जाने की बात सुनकर,
छलक आयीं थीं,
हाँ,
वहां जाकर
ये बात ज़रूर कहना
हमने कहा है,
सियासी नक्शों से।
ज़मीनें बंटती हैं,
दिल नहीं. "

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