कल मैं समाचार पत्र पढने के बाद जब खाली बैठा तो अचानक मेरे मन मे एक विचार आया ।
अगर गुर्ज़रों की ही तरह इस देश मे कुछ और समुदाय भी इसी तरह मांग करने लगें तो ......
उसके बाद कुछ और, फ़िर कुछ और...
क्या होगा आख़िर तब
आज गुर्ज़रों की मांग के रूप मे हमारे सामने आराक्चन का एक भयावह पछ सामने आया है
गुर्ज़रों की मांग और उनके आन्दोलन से उत्पन्न हिंसा हमें दिखाती है की मंडल के दौर के साथ हमारे सामने जो लोलीपॉपरखा गया था वो वास्तव मे एक मीठे जहर का बना हुआ था।जिससे हम चाह के भी छुटकारा नहीं पा सकेंगे और धीरे धीरे हमारा समाज पंगु होता जाएगा, इस आशा के कारण की arachan की लाठी का सहारा पाकर हम भी आगे जायेंगे
ज़रा सोचो क्या बैशाखी के सहारे कोई
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