भागते-दौड़ते लोग, रुकी-रुकी सी जिन्दगी
हर तरफ़ बेशुमार भीड़, तनहा-तनहा आदमी
हर तरफ़ शोर ही शोर, फ़िर भी खामोश हर जुबान
हर तरफ़ इंसान ही इंसान, इंसानियत गुमनाम
हर किसी को मंजिल की तालाश, हर कोई रास्तो से अनजान
हर तरफ़ जगमगाती रौशनी, हर दिल में अँधेरा
हर तरफ़ खुशियों की दुकान, हर तरफ़ गमगीन इंसान
आसमान छूती इमारतें, जमीन में धंसता जाता इंसान
हर किसी की है पहचान, हर कोई एक दूसरे से अंजान
यह है मुंबई मेरी जान
Saturday, June 21, 2008
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