लो फ़िर आ गईं चुनावी बहारें,
सजने लगीं झंडियाँ, बंटने लगे पर्चे
हर तरफ़,हर गली में हैं सियासत के चर्चे
ऐसे मे गाँव में मंत्री जी आए,
संग में अपने हैं पोटली लाये
पोटली में हैं वादे भरे,जो चुनाव बाद लगते मसखरे
नेता जी ने इलाके में जुलूस बुलाया
बड़े से मंच पर आसन जमाया
फ़िर बोले,
बोले तो फ़िर बोलते गए
वे बोले,"मेरा वादा है की इस इलाके के लिए सड़क बनवाऊंगा"
तभी भीड़ से एक आदमी खड़ा हुआ
और बोला,
"और उसमे का दो तिहाई पैसा ख़ुद खा जाऊंगा"
मंत्री जी बोले,
"यहाँ एक अस्पताल बनेगा"
दूसरा बोला,
"जिसका निर्माण कार्य उद्घाटन से आगे नहीं बढेगा"
मंत्री जी बोले,
"गाँव तक बिजली का कनेक्शन आ जाएगा"
तीसरा बोला,
"और बिना बिज़ली आए जो बिल आयेगा,वो भरने क्या तू आएगा"
आख़िर मंत्री जी का धर्य दे गया जवाब
उनका विकासवादी चुनावी अभियान हो गया ख़राब
अब उन्होंने पैंतरा बदल डाला,
ख़ुद को फ़िर से पुराने रंग में रंग डाला
बोले,
"मेरी जाती के लोगों,धर्म के साझेदारों
चिंता न करो , सब को आराक्चन दिलवाऊंगा
और तुम्हारे देवता के नाम का मन्दिर भी बनवाऊंगा
अबकी जनता कुछ न बोली
सुनती रही न जी की ठिठोली
आख़िर नेता जी अपना रंग जमा गए
जनता ताली बजती रही
और वे उसे अंगूठा दिखा गए
चुनाव के बाद मंत्री जी विजयी हो गए थे
क्योंकि,
वे जनता में साम्प्रदायिकता के बीज
पहले से ही बो गए थे।
द्वारा:कौशलेन्द्र
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1 comment:
vha kya baat hai. badhiya.
aap apna word verification hata le taki humko tipani dene me aasani ho.
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