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2 comments:
बाल्टी में सपने ......
इतनी जल्दबाजी क्यों ,जरा संभल कर चोट लग सकती है / पर परवाह किसे है .........हजारो सपने है इस बाल्टी में कभी दो जून की रोटी तो कभी बच्चो के खिलौने , हजारो दायित्व, हजारो आशाये जो छुपी है इसमें संभल कर चलू तो शायद पूरी न कर पाऊ इन्हें फिर देर भी तो हो सकती है .
यह कहानी इस दूध वाले की ही नहीं अपितु भारत में रहने वाले ८० करोड़ मधयम वर्गीय लोगो की है जो विवश है मंजिल तक शीघ्र ही पहुचने के लिए कोई और रास्ता ही नहीं खुद को ताक़ पर रख कर कल पर अधिकार जो करना है ,यह फोटो इस दूध वाले की असावधानी ही नहीं कहानी है हम सभी की ,ढेर सारे सपने , ढेर सारे दायित्यों की प्राप्ति हेतु स्वयं को खोते हम जोखिंम न ले तो करे भी क्या .मैंने आप से कहा था न की ''नैतिकताओ की परिभाषा परिस्थितियों द्वारा ही होती है '' याद है न भैया .................प्रखर मिश्र
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