सुबह सुबह जब आँख खुली तो
सामने पड़ा अखबार मिला,
खोला उसको हर पन्ने पर, क्रंदन हाहाकार मिला
कहीं पे दुश्मन ने मारा था,कहीं दोस्त मक्कार मिला
कहीं खेत खलिहान जले थे,कृषक सदा बेहाल मिला
हर तरफ़ थे भूखे नंगे, पर देश तो मालामाल मिला
देश के रक्षा सौदे मे,नेता है गद्दार मिला
विकाश की योजनाओ मे, अधिकारीयों का भ्रष्टाचार मिला
कहीं पे भाषाई दंगे थे, कहीं फैला छेत्रवाद मिला
देश के अन्दर अंगडाई लेता,मुझको एक अलगाव मिला
कल तक था डाकू कहलाता,वो आज बना सरकार मिला
जो ख़ुद ही अनपढ़ था, उसे शिक्षासुधर का भारमिला
कहीं दूर एक कोने मे मानवता का यार मिला
सुबह की एक कप के साथ मे, मुझे जगत का सार मिला
द्वारा:कौशलेन्द्र
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2 comments:
aap sab acha likhte hain likhte rahiya bahut acha laga....
or apne blog se verification hata de...
sundar. badhai ho.
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