एक बार फ़िर सुबह हो चुकी है
फ़िर सब के जगने का वक़्त आ गया है,
हर सुबह के sath घर मे एक नया अख़बार आता है,देश दुनिया के बरे मे सबको जगाने सब को बताने की क्या कुछ हो रहा है हमारे इस जहाँ मे'
पर हम ने न जगने की कसम खा रखी है,
हम सिर्फ़ अख़बार पढ़ के एक किनारे रख देते हैं ,और फ़िर उसमे लिखिघटनाओ को भूल जाते हैं,फ़िर ने सुबह नया अख़बार नई खबरें,लेकिन हम उन ख़बरों पर कितना विचार करते हैं,क्या हम उन घटनाओं से अपने समाज का कोई रूप जानने की कोसिस करते हैं,क्या हम जानने का प्रयत्न करते हैं की घटनाओं के दूरगामी परिदम क्या होंगे ,
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4 comments:
बढिया प्रयास है आपका, धन्यवाद । स्वागत है ।
हिन्दी ब्लाग प्रवेशिकाnlkr
तिवारी जी, स्वागत है आपका इक़ ने सुबह के साथ. शुभकामनायें.
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उल्टा तीर
स्वागतम
बढिया प्रयास है
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