मुद्दतें बीत गयीं तुझसे मिले हुए
और तू कभी दूर मुझसे गया भी नहीं
दूरियां बढ़ जायें अपने बीच इतनी
ऐसा तो दरमयां अपने
कुछ कभी हुआ ही नहीं
तेरे गम से भर गया है जी मेरा
फ़िर ये कैसे कह दूँ
तेरी जुदाई से हासिल मुझे कुछ हुआ नहीं
जाने कब ये ख्वाहिशों के महल यूँ ही बन गए
तुमने तो कभी पत्थर एक भी रखा नहीं
मैंने जाने क्या-क्या सुन लिया
तुमने तो शायद कभी कुछ कहा ही नहीं
भूल कैसे सकता है भला तू मुझको
जब मैं तेरी यादों में कभी रहा ही नहीं
क्या तुझे भी कभी याद आते हैं वो पल
जब चैन तुझे बिन मेरे एक लम्हा भी रहा नहीं
मैं तो तलबगार तेरा आज भी हूँ
पर सच कहना कि
क्या तू तलबगार कभी मेरा रहा ही नहीं
जाने क्यों चाँद कुछ मुरझा सा गया है
कहीं तूने मेरी तरह उससे भी कुछ कहा तो नहीं
कभी गौर से आइना देखोगी तो पाओगी
कि मेरे जाने के बाद
नूर तेरे चेहरे में भी अब पहले जैसा रहा नहीं
वक्त थोड़ा और गुज़रने दो
जान जाओगी कि प्यार मेरे जितना
कभी किसी ने तुम्हें किया ही नहीं
पैगाम तो भेजा था तुझे मैंने इन घटाओं के हाथ
पर सुना है की इस बार तेरे शहर में
मौसम का हाल कुछ अच्छा रहा नहीं
और अब कुछ कहना नहीं चाहता हूँ
बस इतना जान ले
कि तेरे जाने के बाद
मेरी जिन्दगी में
एक तेरे सिवा कुछ रहा ही नहीं
Sunday, July 20, 2008
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