हमसफ़र जो खो जाते हैं
सिर्फ़ वो ही क्यों याद आते हैं
वो ख्वाब जो बिखर जाते हैं
वो ही क्यों हर पल तड़पाते हैं
लम्हें जिन्हें हम भूलना चाहते हैं
वो क्यों हमारे हर पल में बस जाते हैं
जिन राहों को हम जाने कब छोड़ आए थे
क्यों वो रास्ते हमें बार-बार बुलाते हैं
जिन तस्वीरों को मैं जाने कब जेहन से मिटा चुका हूँ
उनके साए क्यों मुझे हर वक्त डराते हैं
जाने किसको को ढूँढतीं रहती हैं आँखें
जो चेहरे पास हैं वो नज़र क्यों नहीं आते हैं
मुलाकात तो करता हूँ मैं हर किसी से मगर
जाने क्यों लोग मुझे पसंद नहीं आते हैं
जिंदगी कुछ समझाने की कोशिश तो कर रही है मगर-
जाने क्यों इसके फलसफे मुझे समझ नहीं आते हैं
Tuesday, July 8, 2008
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2 comments:
Wonderful poem.
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sundar bhav ke sath likhi gai hai kavita. ati uttam. jari rhe.
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